तेरे जाने के बाद ये शहर भी सुनसान है, हर मोड़ पे तेरी यादों का मकान है… मैं हँसता हूँ मगर दिल में तूफान है, तेरे बिना अब मेरा कौन है… --- तू था तो सब था, अब कुछ भी नहीं… तू थी तो रंग थे, अब बस धुंधली सी सुबह है कहीं… --- तेरे हाथ की वो गर्मी, अब भी उंगलियों में है, तेरे होंठों की वो हँसी, अब भी खामोशियों में है… लोग कहते हैं वक़्त सब ठीक कर देता है, पर तू लौट आए, बस यही दुआ करता है… --- तू था तो सब था, अब कुछ भी नहीं… तू थी तो रंग थे, अब बस धुंधली सी सुबह है कहीं… --- मैंने चाहा तुझे अपनी साँसों से भी ज़्यादा, तू चली गई, मैंने खुद को भी खो दिया… अब ये आँखें रोती हैं बिना वजह के, क्योंकि वजह थी तू… और तू ही तो खो गया… - (Rain sound fades, piano slow) तू था… तो सब था… अब कुछ भी नहीं… कुछ भी… नहीं…
विवेक और आराध्या, दोनों जवान और जोशीले लड़के-लड़की थे। उनकी मुलाकात कॉलेज में हुई थी और वहां से एक दूसरे की तरफ आकर्षित हो गए। उनका प्यार धीरे-धीरे बढ़ता गया और वे एक दूसरे के साथ समय बिताने लगे। दिनों दिन दोनों का रिश्ता मजबूत होता गया और वे आपस में गहरा प्यार करने लगे। बहुत सारी मुसीबतों के बावजूद, उनका प्यार हमेशा उनकी संबंधों को मजबूत रखने में सफल रहा। दोनों ने एक दूसरे की खुशियों और दुःखों का सामना किया, सहयोग किया और एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा। लोग उन्हें एक आदर्श जोड़ी मानते थे और उनकी प्यार भरी कहानी को देखकर हर किसी को आदर्श बनाने के लिए प्रेरित करती थी। लेकिन, ज़िंदगी कभी-कभी ऐसा होता है कि सभी कुछ ठीक चल रहा होता है, लेकिन अप्रत्याशित घटनाएं हमारे जीवन में घुस जाती हैं। ऐसा ही कुछ विवेक और आराध्या के बीच हुआ। अचानक, एक बड़ी विवाद हुआ जिसके बाद उनके बीच का रिश्ता दिन-प्रतिदिन कमजोर होने लगा। वे एक दूसरे की बातें नहीं समझ पा रहे थे और उनके बीच दूरी बढ़ती जा रही थी। दिल के जख्म तेजी से बढ़ रहे थे और इस दौरान, विवेक और आराध्या के बीच बहुत सारी कठिनाइयाँ उभर आई...